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संत नामदेव जी

शब्द (गुरू ग्रंथ साहिब) संत नामदेव जी रागु गउड़ी चेती बाणी नामदेउ जीउ की ੴ सतिगुर प्रसादि 1. देवा पाहन तारीअले देवा पाहन तारीअले ॥ राम कहत जन कस न तरे ॥1॥रहाउ॥ तारीले गनिका बिनु रूप कुबिजा बिआधि अजामलु तारीअले ॥ चरन बधिक जन तेऊ मुकति भए ॥ हउ बलि बलि जिन राम कहे ॥1॥ दासी सुत जनु बिदरु सुदामा उग्रसैन कउ राज दीए ॥ जप हीन तप हीन कुल हीन क्रम हीन नामे के सुआमी तेऊ तरे ॥2॥1॥345॥ (देवा=हे देव, पाहन=पत्थर, कस=क्यों, गनिका=वैश्या, कुबिजा=कंस की गोली, ब्याधि=रोगी,विकारी पुरुष, बधिक=शिकारी जिसने कृष्ण जी के पैर में तीर मारा था, सुत=पुत्र, उग्रसेन=कंस का पिता, तेऊ= वह सभी) आसा बाणी स्री नामदेउ जी की 2. एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई ॥ माइआ चित्र बचित्र बिमोहित बिरला बूझै कोई ॥1॥ सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥ सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई ॥1॥रहाउ॥ जल तरंग अरु फेन बुदबुदा जल ते भिंन न होई ॥ इहु परपंचु पारब्रहम की लीला बिचरत आन न होई ॥2॥ मिथिआ भरमु अरु सुपन मनोरथ सति पदारथु जानिआ ॥ सुक्रित मनसा गुर उपदेसी जाग

अब्दुल हमीद आदम की ग़ज़लें Abdul hameed ki ghajal

1. फ़क़ीर किस दर्जा शादमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा फ़क़ीर किस दर्जा शादमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा हुज़ूर किस दर्जा मेहरबाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा वो मय-कदा था सनम-कदा था कि बाब-ए-जन्नत खुले हुए थे तमाम शब आप हम कहाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा वहाँ बहारों के ज़मज़मे थे वहाँ निगारों के जमगठे थे वहाँ सितारों के कारवाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा पहन के फूलों के ताज सर पर हसीन-ओ-शादाब मसनदों पर सुबू-ब-कफ़ कौन हुक्मराँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा मराहिल-ए-राहत-ओ-अमाँ थे मसाइल-ए-माह-ओ-कहकशाँ थे मशाग़िल-ए-हर्फ़-ओ-दास्ताँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा अगरचे शौक़-ओ-तलब थे बे-साख़्ता हम-आग़ोशियों पे माइल कई तकल्लुफ़ भी दरमियाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा लतीफ़ शामें तबीअतों के ज़मीर से ख़ूब आश्ना थीं हसीं सवेरे मिज़ाज-दाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा नज़र की हद तक मुहीत था सिलसिला महकते हुए गुलों का गुलों में परियों के घर निहाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा अजीब साँचे की कश्तियाँ बह रही थीं लहरों के ज़ेर-ओ-बम पर अजीब सूरत के बादबाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद हो